Highcourt mission hospital केस में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा निर्णय देते हुए याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया।
यह फैसला 24 अप्रैल 2025 को सुरक्षित रखा गया था, जिसे आज न्यायालय ने सुनाते हुए शासन के पक्ष में वैधता प्रदान की।
1885 में सेवा के उद्देश्य से मिली थी जमीन
मिशन अस्पताल को 1885 में 11 एकड़ जमीन सेवा कार्यों के लिए लीज पर दी गई थी।
बिलासपुर के चांटापारा क्षेत्र की यह भूमि वर्ष 1994 तक नवीनीकृत की गई थी, जिसकी एक शर्त यह थी कि बिना कलेक्टर की अनुमति कोई व्यवसायिक निर्माण नहीं होगा।
लेकिन highcourt mission hospital केस में सामने आया कि लीज की शर्तों को दरकिनार कर जमीन का उपयोग व्यापारिक गतिविधियों के लिए किया गया।
डायरेक्टर द्वारा नियमों की अनदेखी
रिपोर्ट के अनुसार, अस्पताल के डायरेक्टर रमन जोगी ने अस्पताल परिसर में चौपाटी और रेस्टोरेंट शुरू कर दिए थे।
भूमि को किराए पर देकर व्यावसायिक लाभ कमाया गया और लीज की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ।
बिना अनुमति के कमर्शियल उपयोग के कारण यह मामला विवाद का विषय बन गया और अंततः न्यायालय की दहलीज पर पहुंचा।
शासन की दलील को न्यायालय ने माना उचित
राज्य की ओर से महाधिवक्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता बार-बार संस्थाओं और पदों में बदलाव कर कोर्ट को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे थे।
पावर ऑफ अटॉर्नी का गलत उपयोग हुआ और प्रक्रिया कानूनी मानकों के अनुरूप नहीं थी।
जस्टिस प्रसाद ने यह निर्णय देते हुए कहा कि अधिकारियों ने पट्टा रद्द करने और भूमि वापस लेने में पूरी तरह अधिकार क्षेत्र के तहत कार्य किया है।
Highcourt mission hospital मामले में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि फैसला संविधान के अनुरूप है।
तीन दशक तक लीज नवीनीकरण नहीं कराया गया
कोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया कि लीज 1994 में समाप्त हो गई थी, लेकिन इसके बाद 30 वर्षों तक उसका नवीनीकरण नहीं कराया गया।
इतने लंबे समय तक लीज नवीनीकरण नहीं होने से शासकीय भूमि पर स्वामित्व का दावा खोखला साबित हुआ