गरियाबंद अनुकंपा नियुक्ति विवाद ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वर्ष 2024 में की गई 22 अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने नाराज़गी जताई है।
जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम का आरोप है कि नियुक्ति प्रक्रिया में न तो शासन की गाइडलाइन का पालन हुआ और न ही कलेक्टर की स्वीकृति ली गई।
उन्होंने दावा किया कि 15 अप्रैल 2024 को शासन द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार नियुक्तियों से पहले जांच समिति बनना अनिवार्य था।
इस समिति की अध्यक्षता अपर कलेक्टर करते और अंतिम स्वीकृति कलेक्टर द्वारा दी जाती। लेकिन इस प्रक्रिया को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।
इतना ही नहीं, नेताम ने यह भी आरोप लगाया कि नियुक्तियों में निजी लाभ लेने के लिए कुछ हितग्राहियों से अवैध वसूली की गई है।
उन्होंने सवाल उठाया कि यदि प्रक्रिया सही थी, तो कलेक्टर की अनुमति क्यों नहीं ली गई? क्या कुछ तथ्यों को छिपाया गया?
मामले में सफाई देते हुए तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी आनंद कुमार सारस्वत ने कहा कि नियुक्तियां समिति की प्रक्रिया से की गईं।
उन्होंने यह भी कहा कि कलेक्टर की अनुमति आवश्यक नहीं थी। वहीं, अपर कलेक्टर अरविंद पांडेय ने माना कि कलेक्टर का अनुमोदन नहीं लिया गया।
उन्होंने कहा कि यदि शिकायत प्राप्त होती है, तो इस पर निष्पक्ष जांच कराई जाएगी और उचित कार्रवाई की जाएगी।
गरियाबंद अनुकंपा नियुक्ति विवाद अब केवल विभागीय मामला नहीं रह गया, बल्कि इससे प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठने लगे हैं।
लोगों की मांग है कि इस पूरी प्रक्रिया की न्यायिक जांच हो और यदि नियमों का उल्लंघन हुआ है, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।