शहर के एक निजी अस्पताल को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। “मां दंतेश्वरी ट्रॉमा एंड क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल” दो साल पहले दिवंगत हुए व्यक्ति के नाम पर अब भी पंजीकृत है।
इस अस्पताल में न केवल निजी स्टाफ बल्कि महारानी अस्पताल के सरकारी डॉक्टर भी नियमित सेवा दे रहे हैं। यह मामला तब सामने आया जब एक स्थानीय मीडिया रिपोर्ट ने गहराई से पड़ताल की और पूरे घटनाक्रम को उजागर किया।
स्वास्थ्य विभाग की जांच बनी औपचारिकता
मीडिया में खुलासा होने के तुरंत बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम अस्पताल पहुंची तो सही, लेकिन नतीजा सिर्फ खानापूर्ति रहा। दस्तावेजों की मांग कर जांच टीम लौट गई।
अब तक न तो कोई वैध कागजात सौंपे गए और न ही किसी तरह की सख्त कार्रवाई सामने आई। जांच दल का व्यवहार बेहद सामान्य और उदासीन रहा, जिससे विभागीय मंशा पर संदेह गहराता जा रहा है।
सरकारी डॉक्टर और निजी अस्पताल की मिलीभगत?
यह गंभीर मामला इस ओर संकेत करता है कि कहीं न कहीं अंदरूनी साठगांठ जरूर है। सरकारी डॉक्टरों की निजी अस्पताल में सेवाएं देना पहले ही नियमविरुद्ध है, और जब अस्पताल मृतक के नाम पर चल रहा हो तो यह अपराध बन जाता है।
विभाग क्यों मांग रहा आवेदन?
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि कोई आवेदन नहीं मिलने तक कार्रवाई संभव नहीं। यह रवैया तब और भी हैरान करता है जब मीडिया में मामला उजागर हो चुका हो।
क्या विभाग पर कोई राजनीतिक या आर्थिक दबाव है? या फिर जांच सिर्फ दिखावे भर के लिए की जा रही है? इन सवालों का जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है।
कानून के मुताबिक तत्काल सीलिंग बनती है
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जब किसी मृतक के नाम पर अस्पताल संचालित हो रहा हो, तो तुरंत सीलिंग और FIR होना चाहिए।
लेकिन अब तक न जांच की गंभीरता दिखी, न अस्पताल प्रबंधन पर कोई कार्यवाही। इससे जनता में भ्रम और अविश्वास की भावना बढ़ रही है।