गरियाबंद (छत्तीसगढ़) — राज्य के सुदूर ग्रामीण इलाके जानडीह कौर में रहने वाले हेमसिंह नेताम अपनी बहन को नाले की बाढ़ में खो देने के बाद, उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाई से दूर होने से बचाने का बीड़ा उठाया।
बहन की मौत ने बदला जीवन
9वीं में पढ़ने वाली जमुना नेताम, 12 साल पहले बरसात के मौसम में स्कूल जाते वक्त बाकड़ी पैरी नाले को पार करते समय बाढ़ की चपेट में आ गई थी। घटना के बाद गांव के कई बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ने की सोच ली थी, लेकिन हेमसिंह नेताम ने न सिर्फ उन्हें समझाया, बल्कि खुद हर दिन उन्हें सुरक्षित नाला पार कराने लगे।
पढ़ाई के लिए जोखिमभरा सफर
जानडीह कौर से धवलपुर स्कूल की दूरी करीब 4 किमी है, जिसमें बच्चों को पहले खतरनाक नाला पार करना होता है और फिर 2 किमी का जंगली रास्ता तय कर स्कूल पहुंचना होता है। बारिश में तेज बहाव होने पर स्कूल जाना नामुमकिन हो जाता है।
बिना पुल के हजारों की परेशानी
यह समस्या सिर्फ छात्रों की नहीं, बल्कि करीब 1,000 की आबादी वाले बल्ली क्षेत्र के सभी लोगों की है। बारिश में आने-जाने का कोई सुरक्षित रास्ता नहीं रहता, जिससे लोग महीनों तक बुनियादी ज़रूरतों से वंचित हो जाते हैं।
स्थानीय नेतृत्व की कोशिशें
जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने बताया कि वर्ष 2023 में बाकड़ी पैरी समेत तीन स्थानों पर उच्च स्तरीय पुल निर्माण की मंजूरी मिली थी। दो जगह काम शुरू हो चुका है, लेकिन बाकड़ी नाला अब भी उपेक्षित है। उन्होंने बताया कि निर्माण शुरू कराने के लिए प्रशासन से लगातार संपर्क किया जा रहा है।
पीडब्ल्यूडी की स्थिति: कार्य वर्षा के बाद
लोक निर्माण विभाग (सेतु शाखा) के एसडीओ एस.के. पंडोले ने बताया कि तकनीकी सर्वे के लिए बोरवेल खुदाई आवश्यक है, जो पहले बाधित हो गया था। अब टेंडर की प्रक्रिया जारी है। बरसात के बाद डीपीआर बनेगी और निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।
हेमसिंह नेताम ने यह साबित कर दिया है कि अगर इच्छा हो तो कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद की राह बनाई जा सकती है। जब तक पुल नहीं बनता, तब तक हेमसिंह ही बच्चों की जीवित पुल बने हुए हैं।