उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के छोटे से गांव की पूजा पाल ने सीमित संसाधनों के बावजूद एक ऐसा नवाचार कर दिखाया है, जो न केवल किसानों के लिए वरदान बन सकता है, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर पहचान भी दिला रहा है।
पूजा पाल का अविष्कार एक धूल रहित थ्रेशर है, जिसे उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण और किसानों की परेशानी को देखकर तैयार किया। इस मॉडल ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया और अब वे जापान तक पहुंच चुकी हैं।
अगेहरा गांव की रहने वाली पूजा एक साधारण परिवार से आती हैं। उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और मां एक सरकारी स्कूल में रसोइया हैं। बिजली और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित होते हुए भी पूजा ने कभी हार नहीं मानी।
उन्होंने आठवीं कक्षा में ही यह देखा कि थ्रेशर मशीन से गेहूं निकालने के समय धूल का बड़ा असर बच्चों और ग्रामीणों पर पड़ता है। सांस की दिक्कत और अस्थमा जैसे खतरे देख उन्होंने यह ठाना कि कुछ नया करना है।
पूजा पाल का अविष्कार विज्ञान शिक्षक राजीव श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में आकार लिया। उन्होंने टिन, पंखे, लकड़ी और पानी की टंकी का उपयोग कर महज ₹3,000 में एक मॉडल तैयार किया, जो थ्रेशिंग के दौरान उठने वाली धूल को टैंक में रोक देता है। इससे वातावरण स्वच्छ रहता है और किसानों को राहत मिलती है।
2020 में जिला स्तर पर मान्यता मिलने के बाद यह मॉडल राज्य और फिर राष्ट्रीय प्रदर्शनी तक पहुंचा। दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान मेले में भी पूजा की मेहनत को विशेष सराहना मिली।
INSPIRE AWARD MANAK योजना 2023 के अंतर्गत भारत सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश से चयनित एकमात्र विजेता घोषित किया। इसके बाद उन्हें साकुरा हाई स्कूल प्रोग्राम के अंतर्गत जापान यात्रा का अवसर मिला। उन्होंने टोक्यो की वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और विश्वविद्यालयों का दौरा किया।
अब भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय उनके इस मॉडल को पेटेंट करा रहा है, जिससे भविष्य में इसका औद्योगिक उपयोग संभव हो सकेगा।
पूजा पाल का अविष्कार सिर्फ एक मशीन नहीं, एक सोच है — कि यदि इरादा मजबूत हो तो हालात कभी रुकावट नहीं बनते।