मुरहा नागेश जमीन न्याय की यह कहानी बताती है कि जब नागरिक अडिग रहते हैं, तब प्रशासन को झुकना पड़ता है। मुरहा नागेश ने चार साल तक अपनी पुश्तैनी जमीन के लिए संघर्ष किया और आखिरकार उन्हें उनकी सात एकड़ भूमि वापस मिल गई।
सोमवार को परिवार सहित भूख हड़ताल पर बैठे मुरहा ने जब आत्मदाह की चेतावनी दी, तब प्रशासन सक्रिय हुआ और अगले ही दिन कब्जा दिलाया गया।
भूख हड़ताल बनी बदलाव की चिंगारी
कलेक्टोरेट के सामने खाली बर्तन लेकर बैठे मुरहा नागेश का शांतिपूर्ण प्रदर्शन धीरे-धीरे चर्चा का विषय बन गया। पहले अधिकारियों ने इसे कोर्ट का मामला बताकर टालने की कोशिश की, लेकिन बढ़ते जनदबाव के बीच देर रात उन्हें लिखित आश्वासन मिला।
मंगलवार को एसडीएम तुलसीदास मरकाम स्वयं गांव पहुंचे और मुरहा को उनकी ज़मीन पर पुनः अधिकार दिलाया।
दोबारा कब्जा करने पर सख्त कार्रवाई
प्रशासन ने गांव में स्पष्ट घोषणा की कि यदि इस भूमि पर दोबारा अवैध कब्जा करने की कोशिश की गई, तो एफआईआर दर्ज कर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
मुरहा नागेश जमीन न्याय अब उन हजारों किसानों की आवाज़ बन गई है, जो वर्षों से अपने अधिकार के लिए संघर्षरत हैं।
भ्रष्टाचार का भी हुआ पर्दाफाश
मुरहा नागेश ने यह भी आरोप लगाया कि गांव के प्रभावशाली लोगों ने राजस्व विभाग के कुछ कर्मियों की मदद से ज़मीन का रिकॉर्ड बदलवा लिया था। इसके लिए उन्होंने भारी रिश्वत भी दी थी।
हालांकि तहसील ने उनके पक्ष में आदेश पारित किया, लेकिन विरोधियों ने उसे एसडीएम कोर्ट में चुनौती दे दी और जमीन पर कब्जा बरकरार रखा।
शांतिपूर्ण संघर्ष से मिली ऐतिहासिक जीत
मुरहा नागेश की यह जीत यह साबित करती है कि ईमानदार और शांतिपूर्ण आंदोलन भी सत्ता और सिस्टम को बदल सकते हैं।
यह कहानी आने वाले समय में उन सभी किसानों को प्रेरणा देगी, जो अपने अधिकार के लिए सालों से संघर्ष कर रहे हैं।